भ्रष्टाचार

"मैं जैसे जैसे भ्रष्टाचार की सीमाएं तोड़ रहा था ठीक वैसे वैसे ही मेरे परिजन शिष्टाचार की मर्यादाएं तोड़ रहे थे, अंत में मैंने पाया कि दौलतें व बच्चे दोनों ही मेरे हाथ से निकल गए।"
आचार्य उदय

3 comments:

Apanatva said...

sahmat ek doosare par asar padta hee hai........

Aabhar.

कविता रावत said...

sach mein bhrastachar ke saath bahut see burayee ka aana lazmi hai... achhi prastuti

प्रवीण पाण्डेय said...

अन्त वही होता है।