मानव धर्म के प्रति आस्था रखना, आध्यात्मिक विचारधारा को अपनाना, आध्यात्मिक होने का तात्पर्य साधु या बाबा हो जाना नहीं है वरन मानवता व मानवीयता को एक-दूसरे के प्रति जागृत करना है साथ ही साथ जो यह सोचते हैं या सोच रहे हैं कि वे यदि मानव धर्म के प्रति आस्था रखेंगे तो वे साधु या बाबा बन जायेंगे यह पूर्णत: गलत है।
मानव धर्म पूर्णत: एक मानव को दूसरे मानव के प्रति संवेदनशील होने व प्रेम करने की शिक्षा देता है इस संवेदना को जागृत करने के लिये किसी चोला को धारण करने की आवश्यकता नहीं है वरन आप जिस रूप में हैं उसी रूप में रहते हुये मानवीय आस्था जागृत कर सकते हैं तथा मानवता का आदर्श प्रस्तुत कर सकते हैं।
आज सर्वाधिक आवश्यकता मानवता व मानवीय द्रष्ट्रिकोण की है, एक-दूसरे के प्रति समर्पण भाव, निस्वार्थ प्रेम व सहयोग की है, कोई अपना-पराया नहीं है, हम सब एक हैं, यह ही मानव धर्म है।
जय गुरुदेव
आचार्य
उदय