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आचार्य जी
जाति, धर्म, संप्रदाय से परे है मानव धर्म ......... मानव धर्म की ओर बढते कदम !
दया और क्षमा
"
दुर्भावनापूर्ण
नियती
से
कार्य
करने
वाले
दया
और
क्षमा
के
पात्र
नहीं
होते
।"
आचार्य
उदय
सतकर्म
"
बड़ी
बड़ी
बातें
करने
से
इंसान
विशाल
नहीं
हो
जाता
,
व्यवहार
में
किये
गए
सतकर्म
ही
इंसान
को
विशाल
बनाते
हैं
।
"
आचार्य
उदय
आस्था व विश्वास
"
आस्था
व
विश्वास
के
पथ
पर
चलकर
जीवन
के
लक्ष्य
को
प्राप्त
करना
सहज
व
सरल
है
।"
आचार्य
उदय
जीवन
"
इंसान
का
जीवन
नदी
के
सामान
है
जो
प्रत्येक
उतार
-
चढ़ाव
को
पार
करते
हुए
अंत
में
सागर
में
समा
जाती
है
।"
आचार्य
उदय
स्वप्न
"
स्वप्न
भले
ही
स्वप्न
होते
हैं
किन्तु
वे
सदैव
ही
अप्रत्यक्ष
रूप
से
इंसान
के
भीतर
ऊर्जा
का
संचार
करते
हैं
।"
आचार्य
उदय
पति-पत्नी
"
पति
-
पत्नी
दोनों
एक
-
दूसरे
के
प्रति
न
सिर्फ
समर्पित
हैं
वरन
कर्तव्य
व
दायित्वों
के
बंधन
से
एक
-
दूसरे
के
पूरक
भी
हैं
."
आचार्य
उदय
पत्नी
"
पत्नी
जीवन
संगनी
होती
है
जो
सम्पूर्ण
जीवन
पति
के
सुख
-
दुख
में
सहभागी
रहती
है
।"
आचार्य
उदय
गुलाम इंसान
"
धनरूपी
माया
इंसान
को
अपना
गुलाम
बना
लेती
है
तथा
गुलाम
इंसान
का
कोई
सामाजिक
व
पारिवारिक
जीवन
नहीं
होता
।"
आचार्य
उदय
व्यवहार
"प्रत्येक मनुष्य स्वयं को महान मानता है किंतु वह व्यवहार मे महानता से परे होता है।"
आचार्य
उदय
भाई-बहन
"
भाई
-
बहन
का
प्यार
जाति
,
धर्म
,
सम्प्रदाय
,
रंग
-
रूप
,
ऊंच
-
नीच
,
धन
-
दौलत
के
भेद
-
भाव
से
परे
है
जो
नौंक
-
झौंक
,
तू
-
तू
-
मैं
-
मैं
से
ओत
-
प्रोत
होता
है
।
"
आचार्य
उदय
त्रुटियाँ
"
मानव
जीवन
में
त्रुटियाँ
होना
स्वाभाविक
प्रक्रिया
है
किन्तु
त्रुटियों
की
स्वीकारोक्ति
में
बड़प्पन
है
।"
आचार्य
उदय
मर्यादाएं
"
स्वतन्त्र
होने
का
तात्पर्य
यह
नहीं
है
कि
हमारी
कोई
मर्यादाएं
ही
नहीं
हैं
। "
आचार्य
उदय
शत्रुता
"
यदि
किसी
मित्र
में
शत्रुता
के
भाव
परिलक्षित
हो
रहें
हैं
तो
उसे
शत्रु
मानकर
तत्काल
अपने
से
दूर
करिये
क्योंकि
शत्रु
सदैव
ही
शत्रु
रहता
है
।"
आचार्य
उदय
स्वतंत्रता
"
स्वतंत्रता
दीपक
में
जल
रही
ज्योत
के
सामान
है
जिसे
संभाल
व
सहेज
कर
रखना
आवश्यक
है
लापरवाही
व
उपेक्षा
करने
से
हवा
का
एक
झोंका
भी
अन्धेरा
कर
सकता
है। "
आचार्य
उदय
मित्रता
"
अच्छे
समय
में
मित्रता
का
आंकलन
करना
मूर्खता
है
बुरे
समय
में
ही
मित्रता
की
सही
परख
संभव
है
। "
आचार्य
उदय
संयम व सहनशीलता
"मानव जीवन के
कठिन
समय
में
संयम
व
सहनशीलता
महत्वपूर्ण
भूमिका
अदा
करते
हैं
।"
आचार्य
उदय
समुन्दर
"बूंद-बूंद से घडा भर सकता है लेकिन नदियां व झरने ही समुन्दर बना सकते हैं।"
आचार्य
उदय
धन, बल और बुद्धि
"
धन
,
बल
और
बुद्धि
इस
संसार
की
अद्भुत
शक्तियां
हैं
तीनों
का
अपना
अपना
प्रभाव
व
महत्त्व
है
आपस
में
एक
-
दूसरे
की
तुलना
करना
उचित
नहीं
है
। "
आचार्य
उदय
लापरवाही व उपेक्षा
"
स्वतन्त्रता
दीपक
में
जल
रही
ज्योत
के
सामान
है
जिसे
संभाल
व
सहेज
कर
रखना
आवश्यक
है
लापरवाही
व
उपेक्षा
करने
से
हवा
का
एक
झोंका
भी
अन्धेरा
कर
सकता
है
। "
आचार्य
उदय
स्वतंत्रता
"
स्वतंत्रता
का
तात्पर्य
स्व
-
निर्धारित
अनुशासन
का
पालन
करते
हुए
स्वछंद
व
मर्यादित
जीवन
यापन
करना
है
।
"
आचार्य
उदय
बड़बोलापन
"
बड़बोलापन
इंसान
को
शिखर
पर
नहीं
ले
जा
सकता
किन्तु
वह
इंसान
के
व्यक्तित्व
को
तुच्छ
बनाने
में
सहायक
अवश्य
बनता
है
। "
आचार्य
उदय
मन: स्थिति
"
बच्चों
की
मन
:
स्थिति
का
समय
-
समय
पर
आंकलन
करना
माता
-
पिता
का
महत्वपूर्ण
दायित्व
है
मन
:
स्थिति
के
अनुरूप
ही
भविष्य
की
कार्य
योजनाएं
निर्धारित
करने
से
परिणाम
सकारात्मक
व
हितकर
प्राप्त
होंगे
।"
आचार्य
उदय
स्वार्थ, कपट व घमन्ड
"
स्वार्थ
,
कपट
व
घमन्ड
से
ओत
-
प्रोत
व्यक्ति
भीड
से
घिरा
होने
के
बाद
भी
सदैव
अकेला
होता
है।
"
आचार्य
उदय
ओजस्वी
"
वाणी
में
मधुरता
इंसान
के
व्यक्तित्व
को
निखारती
व
ओजस्वी
बनाती
है
।"
आचार्य
उदय
प्रेम व स्नेह
"
प्रेम
व
स्नेह
से
बढ़कर
इस
संसार
में
कुछ
भी
नहीं
है
बलवान
,
बुद्धिमान
व
धनाडय
सभी
प्रेम
व
स्नेह
के
भूखे
हैं
।"
आचार्य
उदय
श्रेष्ठ प्रदर्शन
"
खिलाडियों
को
अपना
ध्येय
हार
-
जीत
का
न
रखकर
सदैव
ही
श्रेष्ठ
प्रदर्शन
का
रखना
चाहिये
। "
आचार्य
उदय
सलाह
"
किसी
दूसरे
व्यक्ति
द्वारा
दी
गई
सलाह
को
मानना
अथवा
न
मानना
आपके
विवेक
पर
निर्भर
है
किन्तु
दी
गई
सलाह
पर
विचार
अवश्य
करना
चाहिये
। "
आचार्य
उदय
घमंड
"
घमंड
एक
नशे
के
समान
है
जिसमें
चूर
होकर
इंसान
इंसानियत
भूल
जाता
है
और
उसे
स्वयं
के
अतिरिक्त
अन्य
व्यक्ति
तुच्छ
लगने
लगते
है
किन्तु
घमंड
के
परिणाम
सदैव
ही
नकारात्मक
होते
हैं
"
आचार्य
उदय
कठिन कार्य
"
कोई
भी
कार्य
कठिन
नहीं
होता
,
जब
हम
नहीं
कर
पाते
तो
उसे
कठिन
मान
लेते
हैं
|"
आचार्य
उदय
सत्य का पथ
"सत्य का पथ सहज व् सरल है किन्तु इस मार्ग पर सुकून के साथ चल पाना कठिन है "
आचार्य
उदय
पद की मर्यादा
“
पद
के
साथ
मान
,
प्रतिष्ठा
,
संस्कार
व
व्यवहार
की
गरिमा
जुडी
होती
है
इसलिये
पद
पर
बैठा
हुआ
व्यक्ति
,
व्यक्ति
न
होकर
स्वमेव
पद
होता
है
अत
: पदासीन व्यक्ति को सदैव
पद
की मर्यादा के अनुरुप कार्य करना चाहिये ।”
आचार्य
उदय
भलमन साहत
"कर्ज लेकर किसी जोखिम वाले व्यवसाय में निवेश करना भलमन साहत का कार्य नही है।"
आचार्य
उदय
कट्टरपंथ
" आधुनिकता कट्टरपंथ को समाप्त कर देगी और कट्टरपंथी देखते रह जायेंगे।"
आचार्य
उदय
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