"यदि हम यह जान व सोच कर काम कर रहे हैं कि इस संसार से जाते समय कुछ-न-कुछ साथ में लेकर जायेंगे तो यह हमारी मूर्खता है तात्पर्य यह है कि हम इस संसार के सबसे बड़े मूर्ख हैं।"
आचार्य उदय
जाति, धर्म, संप्रदाय से परे है मानव धर्म ......... मानव धर्म की ओर बढते कदम !
"संभोग के लिए दो शक्तियों अर्थात व्यक्तित्व का स्वैच्छिक मिलन अर्थात समागम अत्यंत आवश्यक है स्वैच्छा के अभाव में एक-दूसरे का समान रूप से भोग करना संभव नहीं है।"
आचार्य उदय