skip to main
|
skip to sidebar
आचार्य जी
जाति, धर्म, संप्रदाय से परे है मानव धर्म ......... मानव धर्म की ओर बढते कदम !
मन
"मन समुद्र की भांति है जहां अद्भुत शक्तियों का भंडारण है
जिसमें
डुबकी लगाकर किसी भी क्षण कुछ न कुछ प्राप्त किया जाना संभव है।"
आचार्य उदय
धन
"धन का एकत्रीकरण बैंक अथवा अलमारियों में होने की अपेक्षा सौन्दर्यीकरण व विकास के क्षेत्र में होने से हम जीवन काल में उसका आनंद प्राप्त कर सकते हैं।"
आचार्य उदय
माता-पिता
"माता-पिता ने हमारे लिए क्या किया - क्या नहीं किया यह उतना महत्वपूर्ण नहीं है उससे कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि हमने उनके लिए क्या किया और क्या कर रहे हैं।"
आचार्य उदय
शिक्षा
"मौन रहकर हम जो शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं संभव है हम वह शिक्षा चर्चा-परिचर्चा के माध्यम से भी न प्राप्त कर सकें।"
आचार्य
उदय
समाज व व्यवस्था
"समाज व व्यवस्था से अधिकाधिक अपेक्षाएं रखने के स्थान पर यह ज्यादा महत्वपूर्ण है कि समाज व व्यवस्था के रूप में हमारा क्या योगदान है।"
आचार्य उदय
समय
"समय के साथ चलना भलमनसाहत का कार्य है किन्तु समय को भी तप से अपने अनुकूल किया जा सकता है।"
आचार्य उदय
ध्यान
"
मन
समुद्री
लहरों
की
भांति
हर
पल
हिलोरे
मारते
रहता
है
उसे
एक
दिशा
प्रदाय
कर
उस
पर
चलते
रहना
ही
ध्यान
है
।"
आचार्य
उदय
पारदर्शिता व तत्परता
"
कार्यशैली
में
पारदर्शिता
व
तत्परता
का
समावेश
करने
से
भ्रष्टाचार
की
संभावना
लगभग
समाप्त
हो
जायेगी
। "
आचार्य
उदय
विजय
"
मुश्किलें
लम्बे
समय
तक
परेशान
कर
सकती
हैं
किन्तु
विजय
धैर्यवान
व
परिश्रमी
व्यक्ति
की
सुनिश्चित
होती
है
।"
आचार्य
उदय
झूठा
"
आँखों
देखा
व
कानों
सुना
भी
झूठा
हो
सकता
है
,
संभव
है
लक्ष्य
दिग्भ्रमित
करने
का
सुनिश्चित
हो
। "
आचार्य
उदय
दौलत
"
दौलत
वह
नहीं
जो
हमें
चैन
से
सोने
नहीं
देती
,
दौलत
तो
वह
है
जो
सदैव
हमारे
चेहरों
पर
मुस्कान
-
सी
खिली
रहती
है
। "
आचार्य
उदय
सुख-शान्ति
"
मन
की
भावनाएं
पावन
व
पवित्र
रहने
से
सुख
-
शान्ति
का
मार्ग
सहज
व
सरल
हो
जाता
है
। "
आचार्य
उदय
प्रीत
"
प्रीत
का
संबंध
मन
से
है
जो
मन
को
भावन
लगने
लगे
समझ
लीजिये
वह
ही
सच्ची
प्रीत
है
। "
आचार्य
उदय
हार-जीत
"
हार
-
जीत
के
क्षण
सुख
-
दुख
से
परिपूर्ण
होते
हैं
किन्तु
इन
पलों
में
भविष्य
की
रणनीति
समाहित
रहती
है
। "
आचार्य
उदय
व्यक्तित्व
"
आचरण
में
दिखावे
की
भावना
का
संचार
उचित
नहीं
है
क्योंकि
दिखावे
की
नीति
हमारे
व्यक्तित्व
को
भ्रष्ट
बनाती
है
। "
आचार्य
उदय
बुराईयाँ
"
समाज
में
व्याप्त
बुराईयों
को
मिटाने
के
साथ
साथ
हमें
अपने
अन्दर
जन्म
ले
रहीं
बुराईयों
का
भी
नाश
करना
आवश्यक
है
।"
आचार्य
उदय
माँ
"
ममतामयी
माँ
की
छाँव
में
शीतलता
-
ही
-
शीतलता
तथा
क्रोधाग्नि
रूपी
माँ
के
स्वरूप
में
ज्वाला
-
ही
-
ज्वाला
प्रगट
होती
है
ये
रूप
एक
माँ
के
ही
दो
स्वरूप
होते
हैं
।"
आचार्य
उदय
सदैव पूज्यनीय
"
जन्म
देने
वाली
माँ
एवं
पालन
पोषण
करने
वाली
माँ
दोनों
का
स्वरूप
एक
ही
है
तथा
दोनों
ही
सदैव
पूज्यनीय
हैं
।"
आचार्य
उदय
क्रोध
"
एक
माँ
ही
है
जिसका
क्रोध
भी
प्रेम
व
स्नेह
से
परिपूर्ण
होता
है
।"
आचार्य
उदय
पाठशाला
"
माँ
स्वमेव
एक
पाठशाला
है
जहां से
हम
प्रेम
,
स्नेह
,
मधुरता
,
सहनशीलता
व
समर्पण
की
शिक्षा
प्राप्त
करते
हैं
।"
आचार्य
उदय
प्रेम व स्नेह
"
छल
,
प्रपंच
,
झूठ
,
फरेव
व
दिखावे
का
व्यवहार
माँ
के
समक्ष
उचित
नहीं
है
ऐसा
व्यवहार
हमें
माँ
के
प्रेम
व
स्नेह
से
वंचित
रखता
है
।"
आचार्य
उदय
मेहनत व प्रार्थना
"
माँ
जीवन
भर
हमारे
पालन
-
पोषण
व
खुशहाली
के
लिए
मेहनत
व
प्रार्थना
करती
रही
,
क्या
आज
हमारा
यही
फर्ज
है
कि
हम
उसे
दूर
कर
दें
या
उससे
दूर
हो
जाएं
?"
आचार्य
उदय
प्रथम पूज्यनीय
"
माता
-
पिता
न
सिर्फ
जन्मदाता
हैं
वरन
प्राथमिक गुरु व
पालनहार
भी
हैं
इसलिए
वे
ही
प्रथम
पूज्यनीय
हैं
।"
आचार्य
उदय
माँ का आशिर्वाद
"माँ के निर्देशों को जो बच्चे अक्षरस: पालन करते हैं उनके लिए माँ का आशीर्वाद व दुआएं अजर-अमर हैं ।"
आचार्य उदय
'सुरक्षा कवच'
"
माँ
सिर्फ
ममता
का
रूप
नहीं
है
वरन
स्वमेव
एक
'
सुरक्षा
कवच
'
है
।"
आचार्य
उदय
द्वैषपूर्ण भाव
"
इंसान
कितना
भी
मधुर
व्यवहार
के
प्रदर्शन
का
प्रयास
कर
ले
किन्तु
उसके
अन्दर
छिपे
द्वैष
पूर्ण
भाव
परिलक्षित
हो
ही
जाते
हैं
।"
आचार्य
उदय
राष्ट्र
"
राष्ट्र
सर्वोपरी
है
,
हमारी
भावनाएं
,
विचारधाराएं
,
सदैव
ही
राष्ट्र
के
प्रति
समर्पित
होनी
चाहिये
।"
आचार्य
उदय
अतीत
"
अतीत
वह
नहीं
जो
गुजर
गया
वरन
अतीत
वह
है
जो
हमारी
यादों
में
ज़िंदा
है
।"
आचार्य
उदय
उजाले की किरण
"
हम
अंधेरे
में
उजाले
की
किरण
बन
सकते
हैं
बशर्ते
हमारा
आचरण
व
व्यवहार
व्यक्तिगत
न
हो
कर
सामाजिक
हो
।"
आचार्य
उदय
विरोध प्रदर्शन
"
यह
आवश्यक
नहीं
कि
विरोध
प्रदर्शन
चीख
-
चिल्ला
कर
ही
किया
जाए
,
मौन
रहकर
किया
गया
विरोध
बेहद
प्रभावशाली
व
कारगर
होता
है
।"
आचार्य
उदय
आदर्श
"
मौखिक
रूप
से
शिक्षा
देने
के
स्थान
पर
व्यवहारिक
आचरण
के
माध्यम
से
शिक्षित
करना
स्वमेव
एक
आदर्श
है
।"
आचार्य
उदय
Newer Posts
Older Posts
Home
Subscribe to:
Posts (Atom)
मानव धर्म
आचार्य जी
aachaaryjee@gmail.com
आचार्य उदय
आशीर्वचन
अमृत वाणी
(218)
आचार्य उदय
(229)
आचार्य जी
(6)
आध्यात्म
(16)
तंत्र-मन्त्र-यंत्र
(3)
पर्यावरण
(15)
भ्रष्टाचार
(17)
यौनशक्ति
(8)
आध्यात्मिक शुभचिंतक
Blog Archive
►
2011
(9)
►
September
(2)
►
June
(6)
►
February
(1)
▼
2010
(227)
►
December
(28)
►
November
(52)
▼
October
(31)
मन
धन
माता-पिता
शिक्षा
समाज व व्यवस्था
समय
ध्यान
पारदर्शिता व तत्परता
विजय
झूठा
दौलत
सुख-शान्ति
प्रीत
हार-जीत
व्यक्तित्व
बुराईयाँ
माँ
सदैव पूज्यनीय
क्रोध
पाठशाला
प्रेम व स्नेह
मेहनत व प्रार्थना
प्रथम पूज्यनीय
माँ का आशिर्वाद
'सुरक्षा कवच'
द्वैषपूर्ण भाव
राष्ट्र
अतीत
उजाले की किरण
विरोध प्रदर्शन
आदर्श
►
September
(30)
►
August
(33)
►
July
(31)
►
June
(20)
►
May
(2)
Please do not change this code for a perfect fonctionality of your counter
widget
hit counter
Please do not change this code for a perfect fonctionality of your counter
widget
webpage counter