"जिंदगी में नियमित उजाले इंसान को लापरवाह बनाते हैं ..... होता ये है कि जब सब कुछ ठीक चलते रहता है तब इंसान कुछ अलग करने के विषय में नहीं सोचता वरन वह वर्तमान व्यवस्थाओं से ही संतुष्ट हो जाता है, जबकि उतार-चढाव इंसान को उनसे लडने,जूझने और नया सृजन करने हेतु नये विचार मन में जागृत करते हैं, जब विचार जागृत होंगे तब ही इंसान कुछ नया करने के लिये मंथन करेगा ..... मंथन से ही सृजन संभव है .... सच कहा जाये तो प्रत्येक अविष्कार की आधारशिला मंथन ही है, मंथन से कुछ करने के लिये सिर्फ़ दिशा का निर्धारण नहीं होता वरन रूपरेखा व लक्ष्य का निर्धारण कर लक्ष्य तक पहुंचने का मार्ग भी प्रशस्त होता है।"
जय गुरुदेव
आचार्य उदय
8 comments:
आचार्यजी को सर्व प्रथम प्रणाम! सौ फ़ीसदी सत्य।
bilkul sahi...manthan se hi srijan sambhav hai.
मंथन से कुछ करने के लिये सिर्फ़ दिशा का निर्धारण नहीं होता वरन रूपरेखा व लक्ष्य का निर्धारण कर लक्ष्य तक पहुंचने का मार्ग भी प्रशस्त होता है।"
सही कहा आचार्य जी । इसीलिए हमने अपने ब्लॉग का नाम अंतर्मंथन रखा है ।
सुविधा कभी कभी भारी हानि कर जाती है ।
दूसरे शब्दों में पहले सपने देखो. फिर उसे पूरा करने हेतु कृतसंकल्प हो जाओ.
सुन्दर बात..सार्थक सन्देश.
isliye,jeevan men utaar-chadhaav zaroori hain aur inhen vikas ke liye aavashyak maanana chahiye.
shatpratishat sahee likha hai aapne .....
aabhar
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