क्या हम मन के गुलाम हैं !

मनुष्य का मन जिसकी शक्ति अपार है, मन की मंथन क्रिया से ही आधुनिक अविष्कार हुए हैं और होते ही जा रहे हैं, मन कभी इधर तो कभी उधर, कभी इसका तो कभी उसका, मन हर पल चंचल स्वभाव से ओत-प्रोत रहता है, पल में खुश तो पल में नाराज।

कहने को तो हम यह ही कहते हैं कि जो हम चाहते हैं वह ही मन करता है, पर हम कितने सही हैं, कहीं ऎसा तो नहीं ये हमारा भ्रम है कि मन हमारी मर्जी के आदेश पर काम करता है, कहीं ऎसा तो नहीं हम स्वयं ही मन के गुलाम हैं जो मन कहता है वह करते हैं जो उसे पसंद है वह करने को आतुर रहते हैं।

यह मनन करने योग्य है, सुबह से उठकर रात के सोने तक क्या हम वह ही करते हैं जो मन कहता जाता है, चाय, दूध, नाश्ता, पान, गुटका, जूस, मदिरा, वेज, नानवेज, प्यार, सेक्स, दोस्ती, दुश्मनी, चाहत, नफ़रत ... संभवत: वह सब करते हैं जो मन कहता जाता है।

जरा आप विचार करें, कितने बार ऎसा हुआ है कि आपने कुछ कहा हो और मन ने किया हो, शायद बहुत ही कम या ऎसा हुआ ही न हो, जरा बैठ के ठंठे दिमाग से सोचिये ... कहीं आप मन के गुलाम तो नहीं हैं !
जय गुरुदेव

आचार्य उदय

8 comments:

आदेश कुमार पंकज said...

बहुत सुंदर और प्रभावशाली

anoop joshi said...

ek swal sir. man sarir me kis jagah hota hai?

सूर्यकान्त गुप्ता said...

हम ही मन के गुलाम हैं

निर्मला कपिला said...

सही कहा आपने आज हम मन से ही नही तन से भी गुलाम हैं। तन कहता है घर का काम नही होता तो आराम से बैठ जाते हैं काम वाली के सिर पर मगर शरीर को कष्ट नही देते कि कुछ व्यायाम ही कर लें तभी सही होंगे और मन से तो हम सदियों से गुलाम हैं तन को ए सी की आदत डाल ली है क्या करें । सुन्दर आलेख।

अरुण चन्द्र रॉय said...

VIGYAN KE MUTABIK MAN TO KUCHH HOTA HI NAHI HAI... HOTA HAI TO MASTISHK... PHIR MASTISHK KI APNI EK LOGICAL THINKING HOTI HAI JO KISI KHAS SITUATION ME KAHS TARAH SE GUIDED HOTI HAI... HUM MAN KE NAHI APNE MASTISHK KE GULAM HAIN... KYON AACHARYA...

अरुण चन्द्र रॉय said...

VIGYAN KE MUTABIK MAN TO KUCHH HOTA HI NAHI HAI... HOTA HAI TO MASTISHK... PHIR MASTISHK KI APNI EK LOGICAL THINKING HOTI HAI JO KISI KHAS SITUATION ME KAHS TARAH SE GUIDED HOTI HAI... HUM MAN KE NAHI APNE MASTISHK KE GULAM HAIN... KYON AACHARYAJI...

संपादक said...

jeete raho.....

hem pandey said...

हम शायद अपने मन के मालिक तो नहीं ही हैं. किसी कवि ने कहा है -
हम जिस क्षण में जो करते हैं
हम बाध्य वही हैं करने को
हंसने के क्षण पा के हंसते
रोते हैं पा रोने के क्षण.