मन क्या है !

मन क्या है, मन आत्मा का एक अदभुत स्वरूप है जो हमारे मस्तिष्क में चलायमान अर्थात क्रियाशील है, मन ही शरीर के आंतरिक स्वरूप तथा प्रकृति रूपी बाहरी स्वरूप के बीच की कडी है, जो हमें दोनो रूपों का साक्षात बोध कराता है।

मन ही हमें प्रत्येक वस्तु के महत्व को समझाता है, इच्छाएं जागृत करता है, भ्रम पैदा करता है, लालच जाग्रत करता है, प्रायश्चित कराता है, आत्मा-परमात्मा की ओर जाने का मार्ग प्रशस्त करता है और जब आप जाने लगें तो जाने से रोकता भी है।

मन आत्मा, परमात्मा, ईश्वर का अंश है जिसे नियंत्रित करना अर्थात मानव जीवन से मुक्ति प्राप्त करना है, कहने का तात्पर्य यह है कि जब आप मन को जीत लोगो तब आत्मा, परमात्मा, ईश्वर के संपर्क में स्वमेव आ जाओगे, सीधे सरल शब्दों में कहा जाये तो मन एक प्रवेश द्वार है जिसमें प्रवेश कर आप आत्मा, परमात्मा, ईश्वर के दर्शन कर सकते हैं।

मन शक्तिरूपी एक पुंज है जो हर क्षण क्रियाशील रहता है, यदि इस मायावी दुनिया में पाने अर्थात विजय प्राप्त करने की कोई विषय वस्तु है तो वो है मन, मन एक अदभुत शक्ति पुंज है जिस पर विजय सकारात्मक सोच व व्यवहार के द्वारा ही संभव है।

आचार्य जी

10 comments:

Arvind Mishra said...

ज्ञान सुभाषितम !

योगेन्द्र मौदगिल said...

Jai ho....

संजय भास्‍कर said...

प्रणाम गुरुदेव
मन ही हमें प्रत्येक वस्तु के महत्व को समझाता है, इच्छाएं जागृत करता है, भ्रम पैदा करता है,
अच्छा लिखा है आपने।

संजय भास्‍कर said...

JAI HO ACHARYA JI KI.....

आपका अख्तर खान अकेला said...

aachaary ji slaam hmaare raajsthaan men to 40 kilo kaaa aek mn hota he . akhtar khan akela kota rajsthan

सूर्यकान्त गुप्ता said...

प्रणाम आचार्य! "मन" की व्याख्या के लिये आभार!

oshoganga-ओशो गंगा said...

आपने लिखा...आईये जाने मन क्‍या है?
ये है मन का एक रूप....

Mrityunjay Kumar Rai said...

ALL YOU WRITTEN ARE JUST LIKE A BOUNCER.

BUT , ONE THING IS CLEAR , THAT ALL U SAID ARE VERY GOOD

Mrityunjay Kumar Rai said...

http://www.madhavrai.blogspot.com/

Satyawati Mishra said...

Achary ji

apne maan ki bahut sundar vyakhya karne ki koshish ki hai.
Mai kewal ek baat kehna chahunga ki "Ichchha rahit hue bina man vash me nahi hoga, chahe koti janmo tak prayas kiya jaye. Ichchhayo ke sath man ka vashibhut hona, dono sath-sath hona asambhav hai, ek hi reh sakega"

@ Manasa Anand "Manas" mai apki uparokt baat se bhi sehmat hu