मन ही मंदिर है !

मन ही मंदिर है !

मंदिर वह पवित्र स्थल जहां ईश्वर का वास होता है, इस धरा पर अनेक धर्म व अनेक ईश्वर हैं, प्रत्येक धर्म ने अपने अपने ईश्वर के लिये स्थान सुनिश्चित कर रखा है जिसे शाब्दिक भाषा में मंदिर, चर्च, मस्जिद, गुरुद्वारा इत्यादि के नाम से जाना जाता है।

यहां पर मैं उस ईश्वर की चर्चा करना चाहता हूं जो किसी धर्म विशेष का न होकर मानव जाति का है, मेरा सीधा-सीधा तात्पर्य मानव जाति अर्थात समाज से है, वो इसलिये जब मानव जन्म लेता है तब उसका कोई धर्म नही होता, वह जिस धर्म को मानने वाले परिवार में जन्म लेता है वह ही उसका धर्म हो जाता है, यह धर्म उसे विरासत में मिलता है।

यहां यह स्पष्ट करना चाहूंगा कि मैं सभी धर्म को समान रूप से मानता हूं व सम्मान देता हूं लेकिन मैं मानव धर्म को प्राथमिक तौर पर सर्वोपरी मानता हूं, वो इसलिये तत्कालीन उपजे हालात व परिस्थितियों में मानव धर्म स्वमेव सर्वोपरी हो जाता है, किसी पीडित व दुखियारी की मदद के समय इंसान यह नही सोचता कि वह किस धर्म या संप्रदाय का है, यह ही मानव धर्म है।

मानव, मानव धर्म, मन ही मंदिर ... यहां मानव से तात्पर्य इंसान से, मानव धर्म से तात्पर्य इंसानियत से, मन ही मंदिर से तात्पर्य मानव के मन से है ... मानव का मन ही वह स्थल है जहां ईश्वर सकारात्मक सोच व ऊर्जा के रूप में वास करता है और मनुष्य को सतकर्म का मार्ग प्रशस्त करते हुये जीवन दर्शन कराता है ... मानवीय सोच, ऊर्जा व ईश्वर का वास मन रूपी मंदिर में होता है अर्थात मन ही मंदिर है !
जय गुरुदेव

आचार्य उदय

11 comments:

मीनाक्षी said...

प्रणाम..पहली बार आना हुआ.. मन की शांति..क्रोध अग्नि के समान और अब मन के सुन्दर मन्दिर के बारे मे पढ़ कर अच्छा लगा..मानव धर्म से बड़ा कोई धर्म नहीं बस यही जाना समझा है...

संजय भास्‍कर said...

मानवीय सोच, ऊर्जा व ईश्वर का वास मन रूपी मंदिर में होता है अर्थात मन ही मंदिर है !

सूर्यकान्त गुप्ता said...

वायु से भी तीव्रगामी इस मन पर विजय प्राप्त कैसे करें आचार्य! इस जगत मे मानवता के बजाय दानवता मे हो रही बढोतरी पर काबू करने का उपाय भी सुझाये!! हरिओम तत्सत!

माधव( Madhav) said...

प्रणाम

पापा जी said...

प्रणाम गुरुदेव

संतोष त्रिवेदी said...

sachcha dharma vahi hai jo sabhi ke liye kalyankari ho.....maanav-dharm sabse bada hai....

अमिताभ श्रीवास्तव said...

aapki MAN VYAKHYA achhi lagi. kintu mere saath kuchh esi kamjoriya he ki man aadi ke sandarbh me gahan adhdhyan kar rakhaa he aour is baare me bahut se vichaar umadate rahte he..isaliye chahunga ki aap vistaar se likhe..achha vishaya he.

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

धन्य है आचार्य जी आप
आपकी लीला अपरम्पार है।

अंजना said...

मन ही मन्दिर है । वास्तव मे मन मे अपने आप को देखने की क्षमता है। मन की सहायता से हम मन का विश्लेषण कर सकते है और देख सकते है कि मन मे क्या चल रहा है। मन के पीछे आत्मा है।आत्मा की उलझन को सुलझाने वाली शक्ति यह मन ही है।

Rohit Singh said...

इस मयावी संसार में आपका स्वागत है। हम मूर्ति पूजक हैं। सो अपना चित्र तो दें महाराज। साथ ही परिचय भी। बिना परिचय दिए तो आपको हम कलयुगी पहचान नहीं पाएंगे। उम्मीद है आपका चित्र औऱ परिचय अवश्य मिलेगा।

shyam gupta said...

----हां आचार्य जी , मन तो बस मन्दिर ही है, उसमें बसने वाला ईश्वर तो आत्मा है, बस समस्या यह है कि यह ’मैं’ कौन है ? मन या आत्मा या ??