संपत्ति

"भ्रष्टाचार पाप कर्मों से अर्जित संपत्ति निसंदेह इंसान को धनाढय बनाती है किन्तु यही संपत्ति परिजनों को संस्कार विहीन भी बना देती है।"

आचार्य उदय