जाति, धर्म, संप्रदाय से परे है मानव धर्म ......... मानव धर्म की ओर बढते कदम !
गाँठ मन में बाँध ली ।
जब तक मनुष्य स्वयं की पहचान अपने शरीर के रूप में करता रहेगा तब तक वह जो कुछ भी कार्य करेगा वह केवल शरीर-तुष्टि के लिये ही होगा।......... जब कोई मनुष्य स्वयं की पहचान आत्मा के रूप में कर लेता है तब वह जो कुछ भी करता है वह सब आत्म-तुष्टि के लिये ही करता है।........
बहुत ही सही बात कही आपने,धन्यवाद।
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गाँठ मन में बाँध ली ।
जब तक मनुष्य स्वयं की पहचान अपने शरीर के रूप में करता रहेगा तब तक वह जो कुछ भी कार्य करेगा वह केवल शरीर-तुष्टि के लिये ही होगा।.........
जब कोई मनुष्य स्वयं की पहचान आत्मा के रूप में कर लेता है तब वह जो कुछ भी करता है वह सब आत्म-तुष्टि के लिये ही करता है।........
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