धर्म - अधर्म

धर्म - अधर्म क्या है ! मानव धर्म व मानवीय द्रष्ट्रिकोण से देखें तो धर्म व अधर्म की बेहद संक्षिप्त परिभाषा है किन्तु परिणाम बेहद विस्तृत हैं, सदभावना पूर्ण ढंग से किये गये कार्य धर्म हैं तथा दुर्भावना पूर्ण ढंग से किये गये कार्य अधर्म हैं।

सदभावना पूर्ण ढंग से किये गये कार्य सदैव ही मन को शांति प्रदान करते हैं, परिणाम सकारात्मक या नकारात्मक अथवा सामान्य प्राप्त हो सकते हैं किन्तु कार्य संपादन के दौरान चारों ओर शांति व सौहार्द्र का वातावरण बना रहता है।

दुर्भावना पूर्ण ढंग से किये गये कार्य सदैव ही मन को विचलित रखते हैं, कार्य आरंभ से लेकर समापन तक मन में व्याकुलता व अनिश्चितता बनी रहती है परिणाम सकारात्मक होने के पश्चात भी मन में संतुष्टि का अभाव रहता है।

जय गुरुदेव

आचार्य उदय

3 comments:

सूर्यकान्त गुप्ता said...

जय गुरुदेव!

प्रवीण पाण्डेय said...

समुचित व्याख्या । आभार ।

Ravi Kant Sharma said...

शास्त्रों की आज्ञानुसार कार्य करना धर्म होता है, और शास्त्रों के विपरीत कार्य करना अधर्म होता है, शास्त्र एकमात्र गीता ही है।