जाति, धर्म, संप्रदाय से परे है मानव धर्म ......... मानव धर्म की ओर बढते कदम !
आचार्य जी, सत्य बचन! कल्पना ही साकार होती हैं। परन्तु मानव जीवन तभी सफ़ल होता है कि कल्पनायें भौतिक न होकर आध्यात्मिक हों।
अभ्यास से कुछ भी संभव है ।
लेकिन कल्पनाएँ तब तक केवल कल्पनाएँ ही रहती हैं जब तक इन्हें साकार करने को ठोस प्रयास ना किये जायें
जय गुरुदेव!
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आचार्य जी, सत्य बचन! कल्पना ही साकार होती हैं। परन्तु मानव जीवन तभी सफ़ल होता है कि कल्पनायें भौतिक न होकर आध्यात्मिक हों।
अभ्यास से कुछ भी संभव है ।
लेकिन कल्पनाएँ तब तक केवल कल्पनाएँ ही रहती हैं जब तक इन्हें साकार करने को ठोस प्रयास ना किये जायें
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