"मुझे विरासत में क्या मिला, शायद कुछ नहीं, पर मैं अपने बच्चों को विरासत में कुछ देना चाहता हूँ, पर क्या ? ... भ्रष्टाचार व बेईमानी से अर्जित संपत्ति या अच्छे संस्कार !"
आचार्य उदय
जाति, धर्म, संप्रदाय से परे है मानव धर्म ......... मानव धर्म की ओर बढते कदम !
9 comments:
आचार्य जी आज अच्छा लगा आपके विचारो को जानकार,अमूल्य विचार ।
ब्लागर और साहित्यकार तथा पत्रिका SADBHAVNA DRAPAN के सम्पादक गिरीश पंकज का साक्षात्कार/interview पढने के लिऐ यहा क्लिक करेँएक बार अवश्य पढेँ
निश्चित ही अच्छे संस्कार..माहौल बदलेगा.
your thoughts are enriching my persona.
किसी की एक कविता याद आ गयी-
When I was young my father said
That one should try to get ahead
Today I say my young son Steven
That he will do well If he stays even.
कोशिश तो हर कोई अच्छे संस्कार की ही करता है
अमूल्य विचार ।
अद्भुत !!!
सत्यमेव जयते ।
प्रत्येक जीव संस्कार लेकर इस जगत में आता है, और संस्कार लेकर ही इस जगत से जाता है। सभी भौतिक वस्तुएं न तो किसी से लेता है और न ही किसी को देता है। जो कुछ भी लेता और देता दिखाई देता है वह सब संस्कारों पर आधारित होता है।
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