“लेखन एक कला है, शब्दों की रचना, लेख, कहानी, कविता, गजल, शेर-शायरी नवीन अभिव्यक्तियाँ होती हैं, अभिव्यक्तियों के भाव-विचार सकारात्मक अथवा नकारात्मक हो सकते हैं किंतु इन अभिव्यक्तियों के आधार पर लेखक की मन: स्थिति का आँकलन करना निरर्थक है।”
आचार्य उदय
13 comments:
रचना के संदर्भों में सार्थक अवलोकन।
निश्चित ही आपसे सहमत!
सही बात यह सच्चाई है
...प्रणाम आचार्य जी !!!
लेखक की मानसिकता तो कहीं न कहीं उजागर होती ही है, कोई ऐसे ही कुछ नहीं लिख देता और यदि लिखता है तो फिर उसका मन का नहीं है केवल नकल भर है। क्षमा करिए मैं इस बात से सहमत नहीं हूँ।
हम केवल लेखक ही नही बल्कि किसी भी व्यक्ति की मन स्थिति का आंकलन नही कर सकते है जो लोग दूसरों की मानसिकता का आंकलन करने में लगे रहते हैं, वह अपना समय ही बर्बाद करते हैं। प्रत्येक व्यक्ति केवल अपनी मन स्थिति का ही आंकलन कर सकता है।
@ajit gupta
आप क्षमा न मांगे, सहमती-असहमती एक अलग विषय है,धन्यवाद।
बहुत बढिया!
आपसे सहमत!
क्षमा करें इस बात से मैं असहमत हूँ ...
लेखन से लेखक की मानसिक स्थिति का पता कुछ हद तक चल सकता है ...
(अपवाद: ब्लॉग टिप्पणियां)
हम इस विचार से सहमत हूं।
हम इस विचार से सहमत हूं।
Kuch hat tak to manhsthiti ka anklan kiya jaa sakta hai lekin purn roop se nahi..... Lekhan nisandeh ek kala hai...
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