शर्म

"यह अत्यंत शर्म की बात है कि हम ही पर्यावरण को अप्रत्यक्ष रूप से दूषित कर रहे हैं और हम ही प्रत्यक्ष रूप से दूषित पर्यावरण के शिकार हैं।"
आचार्य उदय

2 comments:

Apanatva said...

jaisa karenge vaisa hee to bharenge.

प्रवीण पाण्डेय said...

जो करेंगे, उसका फल तो मिलेगा ही।