"यह आवश्यक नहीं कि सिर्फ आँख मूंदकर ध्यान अथवा जाप करने से ही कुण्डलिनी शक्ति जागृत हो वरन किसी भी कार्य को एकाग्रचित होकर संपन्न करने के दौरान भी कुण्डलिनी शक्ति का जागृत होना संभव है।"
आचार्य उदय
जाति, धर्म, संप्रदाय से परे है मानव धर्म ......... मानव धर्म की ओर बढते कदम !
2 comments:
एकाग्रता व समग्रता।
bilkul sach kahaa aapne.
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