"संभोग के लिए दो शक्तियों अर्थात व्यक्तित्व का स्वैच्छिक मिलन अर्थात समागम अत्यंत आवश्यक है स्वैच्छा के अभाव में एक-दूसरे का समान रूप से भोग करना संभव नहीं है।"
आचार्य उदय
जाति, धर्म, संप्रदाय से परे है मानव धर्म ......... मानव धर्म की ओर बढते कदम !
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