"पाप कर्मों से कमाई गई दौलत के हिस्से को दान-पुण्य में लगाने से हम दिखावे के लिए धर्मात्मा बन सकते है किन्तु सत्य तो यही रहेगा की हम ईश्वर की नज़रों में गुनहगार हैं।"
आचार्य उदय
जाति, धर्म, संप्रदाय से परे है मानव धर्म ......... मानव धर्म की ओर बढते कदम !
4 comments:
saty vachan.
ईश्वर और अपनी दोनो की नज़रो मे गुनहगार्।
बात अपनी नज़रों में सत्य बने रहने की है।
Apni nazar to bas ham band kar kete ahin aise mein ...
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