जाति, धर्म, संप्रदाय से परे है मानव धर्म ......... मानव धर्म की ओर बढते कदम !
सत्य वचन ...
स्वतन्त्रतता उसके सदुपयोग से ही पल्लवित रहती है।
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2 comments:
सत्य वचन ...
स्वतन्त्रतता उसके सदुपयोग से ही पल्लवित रहती है।
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