शत्रुता

"यदि किसी मित्र में शत्रुता के भाव परिलक्षित हो रहें हैं तो उसे शत्रु मानकर तत्काल अपने से दूर करिये क्योंकि शत्रु सदैव ही शत्रु रहता है।"

आचार्य उदय

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