“पद के साथ मान, प्रतिष्ठा, संस्कार व व्यवहार की गरिमा जुडी होती है इसलिये पद पर बैठा हुआ व्यक्ति, व्यक्ति न होकर स्वमेव पद होता है अत: पदासीन व्यक्ति को सदैव पद की मर्यादा के अनुरुप कार्य करना चाहिये ।”
आचार्य उदय
जाति, धर्म, संप्रदाय से परे है मानव धर्म ......... मानव धर्म की ओर बढते कदम !
5 comments:
उत्तम विचार!!
bikul sahi.
आचरणिय आचार आचार्य जी
पद की मर्यादा व्यक्ति से बड़ी हो जाती है।
Agree with Pravin Pandey.
Post a Comment