मन

"मन समुद्र की भांति है जहां अद्भुत शक्तियों का भंडारण है जिसमें डुबकी लगाकर किसी भी क्षण कुछ न कुछ प्राप्त किया जाना संभव है।"
आचार्य उदय

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

पर इनकी लहरों के थपेड़े खाते रहते हैं हम।

Apanatva said...

poorn roop se sahmat.