"यह आवश्यक नहीं कि मातृभाषा, क्षेत्र भाषा, राष्ट्र भाषा, अंतर्राष्ट्रीय भाषा, सब एक ही हो किन्तु यह नितांत आवश्यक है कि एक भाषा ऐसी अवश्य हो जो एक-दूसरे को जानने-समझने में सहायक हो।"
आचार्य उदय
जाति, धर्म, संप्रदाय से परे है मानव धर्म ......... मानव धर्म की ओर बढते कदम !
2 comments:
सबके लिये सच।
bilkul sahi.
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