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आचार्य जी
जाति, धर्म, संप्रदाय से परे है मानव धर्म ......... मानव धर्म की ओर बढते कदम !
अजर-अमर
"
जिस
प्रकार
नदी
बहते
हुए
अंत
में
सागर
में
विलीन हो
जाती
है
ठीक
उसी
प्रकार
इंसान
भी
भक्ति
मार्ग
पर
चलते
हुए
ईश्वर
में
विलीन हो
कर
अजर
-
अमर
हो
जाता
है
।"
आचार्य
उदय
1 comment:
प्रवीण पाण्डेय
said...
अहा।
September 12, 2010 at 8:02 AM
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मानव धर्म
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1 comment:
अहा।
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