"मैंने छल व बेईमानी से इतनी धन-दौलत संग्रहित कर ली है कि चिंता के कारण रात में नींद नहीं आती, वहीं दूसरी ओर मेरे सारे परिजन बेईमान निकल गए हैं अब सोच रहा हूँ कि मुझे छल व बेईमानी करने की जरुरत क्या थी !"
आचार्य उदय
जाति, धर्म, संप्रदाय से परे है मानव धर्म ......... मानव धर्म की ओर बढते कदम !
1 comment:
uttam.
karmo ke bandh khud ko hee kaatne padte hai usame koi bhageedar nahee banta...........
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