tag:blogger.com,1999:blog-4400605925562052228.post8294320958693125197..comments2023-07-09T02:40:14.020-07:00Comments on आचार्य जी: मानव धर्मआचार्य उदयhttp://www.blogger.com/profile/05680266436473549689noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-4400605925562052228.post-52929584587096311792010-06-08T08:21:57.741-07:002010-06-08T08:21:57.741-07:00@ "आज मनुष्य क्यों जातिगत व धार्मिकता के बंधन...@ "<i>आज मनुष्य क्यों जातिगत व धार्मिकता के बंधन में बंधकर मानवता से परे हो रहा है, आज सर्वाधिक आवश्यकता मानवता व मानवीय द्रष्ट्रिकोण की है, एक-दूसरे के प्रति समर्पण भाव, निस्वार्थ प्रेम व सहयोग की है, कोई अपना-पराया नहीं है, हम सब एक हैं, यह ही मानव धर्म है।</i>"<br /><br />आपके धार्मिकता या धर्म कहने से क्या तात्पर्य है? जहाँ तक मैं जानता हूँ धार्मिकता से अथवा धर्म पालन से ही मानवीय द्रष्टिकोण और समर्पण, निस्वार्थ सहयोग भाव आदि मनुष्य के लिये आवश्यक गुण पैदा होते है. कैसा विरोधाभास है -- आप कहरहे हैं धार्मिकता के बंधन में बंधकर मानवता से परे हो रहा है. समस्त विश्व एक परिवार है यह बात कहाँ से आई --धर्म से , हम सब एक हैं --कहाँ से संज्ञान हुआ --धर्म से, यह ही मानव धर्म है --कौन कहता है ऐसा वैदिक सनातन हिंदू धर्म तो आपको एक नयी धर्म विशेष संज्ञा की आवश्यकता क्यों पड़ी 'मानव धर्म' <br />कारण बताएँगे इसका और आपने मेरी आपके लेख मैं कौन हूँ पर छोड़ी गयी टिप्पणी का उत्तर भी अभी तक नहीं दिया.<br />मैं यहाँ आपसे कोई प्रतिस्पर्धा करने नहीं आया हूँ बस मेरा उद्देश्य केवल मात्र सत्य कहना और जानना है कृपया आप इसको अन्यथा न लें.सौरभ आत्रेयhttps://www.blogger.com/profile/05755493100532160245noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4400605925562052228.post-3452037491420040002010-06-08T06:28:54.829-07:002010-06-08T06:28:54.829-07:00आचार्य जी
धर्म अर्थात स्वभाव!
सृष्टि में हर कोई अप...आचार्य जी<br />धर्म अर्थात स्वभाव!<br />सृष्टि में हर कोई अपने अपने स्वभाव में स्थित है.<br />मानव के साथ सम्भावनाओं के नये आयाम विकसित होते हैं क्योकि कर्म की स्वतंत्रता हम मनुष्यों में अद्भुत है. <br />गहरे में देखें तो कर्म कर्ता के सन्दर्भ में होता है और कर्ता, करने के भाव में निहित मनोदशा है जो हमें उस कर्म से बाधं देती है. <br />तत्व चर्चा के इस मंच पर आप सुन्दर विचारों से विवेक को जगाते रहें इसी कामना के साथ साधुवाद.सम्वेदना के स्वरhttps://www.blogger.com/profile/12766553357942508996noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4400605925562052228.post-74781018731562340752010-06-07T20:33:11.538-07:002010-06-07T20:33:11.538-07:00bahut acchha article diya he. saadhuwad.bahut acchha article diya he. saadhuwad.अनामिका की सदायें ......https://www.blogger.com/profile/08628292381461467192noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4400605925562052228.post-30145068036093384712010-06-07T20:15:06.047-07:002010-06-07T20:15:06.047-07:00मानव धर्म से मेरा तात्पर्य मानवता से है मानवता जो ...मानव धर्म से मेरा तात्पर्य मानवता से है मानवता जो एक मनुष्य को दूसरे मनुष्य के प्रति संवेदनशील रखती है।<br /><br />सत्य वचन गुरुदेवसंजय भास्कर https://www.blogger.com/profile/08195795661130888170noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4400605925562052228.post-26496535842322247002010-06-07T20:12:45.360-07:002010-06-07T20:12:45.360-07:00जय गुरुदेव
सत्य वचन
आचार्य श्याम कोरी 'उदय...जय गुरुदेव<br />सत्य वचन <br />आचार्य श्याम कोरी 'उदय'संजय भास्कर https://www.blogger.com/profile/08195795661130888170noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4400605925562052228.post-4966268471335566842010-06-07T19:24:08.650-07:002010-06-07T19:24:08.650-07:00आचार्य प्रणाम! सत्य वचन ।आचार्य प्रणाम! सत्य वचन ।सूर्यकान्त गुप्ताhttps://www.blogger.com/profile/05578755806551691839noreply@blogger.com